मंत्रिमंडल ने नागरिक उड्डयन में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश नीति को मंजूरी

प्रधानमंत्री  नरेन्‍द्र मोदी की अध्‍यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मैसर्स एयर इंडिया लिमिटेड के मामले में उन एनआरआई को स्‍वचालित मार्ग से 100 प्रतिशत तक विदेशी निवेश की अनुमति देने के लिए मौजूदा एफडीआई नीति में संशोधन को मंजूरी दी है जो भारत के नागरिक हैं। मौजूदा एफडीआई के अनुसार, अनुसूचित हवाई परिवहन सेवा/ घरेलू अनुसूचित यात्री एयरलाइन में स्वचालित मार्ग से 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति है (49 प्रतिशत तक स्वचालित और 49 प्रतिशत से अधिक सरकार के जरिये)। हालांकि एनआरआई के लिए अनुसूचित हवाई परिवहन सेवा/ घरेलू अनुसूचित यात्री एयरलाइन में स्वचालित मार्ग के तहत 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति है। लेकिन शर्त यह है कि विमान नियम 1937 के अनुसार पर्याप्‍त स्‍वामित्‍व एवं प्रभावी नियंत्रण (एसओईसी) भारतीय नागरिकों में निहित होगा।


 हालांकि मैसर्स एयर इंडिया लिमिटेड के लिए मौजूदा नीति के अनुसार, मैसर्स एयर इंडिया लिमिटेड में प्रत्‍यक्ष अथवा अप्रत्‍यक्ष तौर पर 49 प्रतिशत से अधिक विदेशी निवेश की अनुमति नहीं है और वह इस शर्त पर आधारित है कि मैसर्स एयर इंडिया लिमिटेड में पर्याप्‍त स्‍वामित्‍व एवं प्रभावी नियंत्रण भारतीय नागरिकों में निहित हो। इसलिए अनुसूचित हवाई परिवहन सेवा/ घरेलू अनुसूचित यात्री एयरलाइन में एनआरआई के लिए स्वचालित मार्ग के तहत 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति होने के बावजूद मैसर्स एयर इंडिया लिमिटेड के मामले में यह केवल 49 प्रतिशत तक सीमित है।


लाभ: भारत सरकार द्वारा मैसर्स एयर इंडिया लिमिटेड के 100 प्रतिशत प्रस्तावित रणनीतिक विनिवेश के संदर्भ में मैसर्स एयर इंडिया लिमिटेड में सरकार की कोई शेष हिस्‍सेदारी नहीं होगी और वह पूरी तरह निजी स्वामित्व में होगी। इसलिए यह निर्णय लिया गया है कि एम/एस एयर इंडिया लिमिटेड में विदेशी निवेश के जरिये उसे अन्य अनुसूचित विमानन कंपनियों की श्रेणी में लाया जाना चाहिए। एफडीआई नीति में इस संशोधन से मैसर्स एयर इंडिया लिमिटेड में अन्य अनुसूचित एयरलाइन ऑपरेटरों के अनुरूप विदेशी निवेश की अनुमति मिल जाएगी यानी मैसर्स एयर इंडिया लिमिटेड में उन एनआरआई को 100 प्रतिशत तक विदेशी निवेश की अनुमति होगी  जो भारतीय नागरिक हैं। एफडीआई नीति में प्रस्तावित संशोधन एनआरआईएस को स्वचालित मार्ग से मैसर्स एयर इंडिया लिमिटेड में 100 प्रतिशत तक विदेशी निवेश करने में समर्थ बनाएगा।एफडीआई नीति में उपरोक्‍त संशोधन का उद्देश्‍य देश में कारोबारी सुगमता उपलब्‍ध कराने के लिए एफडीआई नीति को उदार और सरल बनाना है। इसके जरिये सबसे बड़े एफडीआई का मार्ग प्रशस्‍त होगा जिससे निवेश, आय और रोजगार में वृद्धि को बल मिलेगा।


पृष्ठभूमि:      एफडीआई आर्थिक विकास का एक प्रमुख वाहक है और यह देश के आर्थिक विकास के लिए गैर-ऋण वित्तपोषण का एक स्रोत है। देश में बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश को आकर्षित करने के उद्देश्‍य से एफडीआई नीति की लगातार समीक्षा की जाती है। सरकार ने निवेशकों के अनुकूल एफडीआई नीति तैयार की है जिसके तहत अधिकतर क्षेत्रों/ गतिविधियों में स्वचालित मार्ग पर 100 प्रतिशत तक एफडीआई की अनुमति दी गई है।  भारत को एक आकर्षक निवेश गंतव्य बनाने के लिए हाल के दिनों में विभिन्न क्षेत्रों में एफडीआई नीति के प्रावधानों को लगातार उदार बनाया गया है। इन क्षेत्रों में रक्षा, निर्माण एवं विकास, व्यापार, औषधि, बिजली विनिमय, बीमा, पेंशन, अन्य वित्तीय सेवाएं, परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियां, प्रसारण, एकल ब्रांड खुदरा व्‍यापार, कोयला खनन, डिजिटल मीडिया आदि शामिल हैं। इन सुधारों ने हाल के दिनों में भारत में हुए एफडीआई निवेशक में उल्‍लेखनीय योगदान दिया है। वर्ष 2014-15 में भारत में एफडीआई प्रवाह 45.15 बिलियन अमेरिकी डॉलर था और तब से इसमें लगातार वृद्धि हुई है। वर्ष 2015-16 में एफडीआई प्रवाह 55.56 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा जबकि वर्ष 2016-17 में 60.22 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2017-18 में 60.97 बिलियन अमेरिकी डॉलर का एफडीआई निवेश हुआ। पिछले वित्‍त वर्ष यानी 2018-19 में देश में एफडीआई प्रवाह 62.00 बिलियन अमेरिकी डॉलर (अनंतिम आंकड़ा) दर्ज किया गया जो अब तक का सर्वाधिक है। पिछले पिछले साढ़े उन्‍नीस वर्षों (अप्रैल 2000 से सितंबर 2019) के दौरान कुल एफडीआई प्रवाह 642 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा जबकि पिछले साढ़े पांच वर्षों (अप्रैल 2014 से सितंबर 2019) के दौरान देश में कुल 319 बिलियन अमेरिकी डॉलर का एफडीआई प्रवाह हुआ जो पिछले साढ़े उन्‍नीस वर्षों में हुए कुल एफडीआई निवेश का लगभग 50 प्रतिशत है। पिछले कुछ वर्षों से वैश्विक एफडीआई के अंतरप्रवाह में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यूएनसीटीएडी की वर्ल्ड इनवेस्टमेंट रिपोर्ट 2019 के अनुसार, वर्ष 2018 में वैश्विक प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) 13 प्रतिशत घटकर 1.3 ट्रिलियन रह गया जो इसकी लगातार तीसरी वार्षिक गिरावट है। वैश्विक तस्वीर साफ न होने के बावजूद भारत वैश्विक एफडीआई प्रवाह के लिए एक पसंदीदा और आकर्षक गंतव्य बना हुआ है। हालांकि देश में विदेशी निवेश आकर्षित करने की क्षमता मौजूद है। लेकिन ऐसा महसूस किया गया है कि एफडीआई नीति के नियमों को अधिक उदार एवं सरल बनाकर कहीं अधिक एफडीआई निवेश आकर्षित किया जा सकता है।