केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में 50 वर्षों से चले आ रहे बोडो मुद्दे के समाधान के लिये समझौता किया गया । इस अवसर पर उन्होने कहा कि जिस समस्या के कारण करीब 4 हजार लोगों की जानें गईं, आज उसका एक स्थाई एवं सफल निदान हो गया है |इस दौरान असम के मुख्य मंत्री सर्वानंद सोनोवाल, अध्यक्ष नेडा (NEDA), हिमंता विस्वा सर्मा, बीटीसी (Bodoland Territorial Council) के मुख्य कार्यकारी सदस्य हग्रामा मोहिलारी, एबीएसयू (ABSU), यूबीपीओ (United Boro People Organization), एनडीएफबी (NDFB) के गोविन्दा बासूमतारी, धीरेन्द्र बोरा, रंजन दाइमारी तथा सरायगारा घटकों के प्रतिनिधि सहित केंद्र सरकार तथा असम सरकार के वरिष्ठ अधिकारी शामिल रहे।
इस समझौते के बाद 1500 से अधिक हथियारधारी सदस्य हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हो जाएँगे | समझौते में भारत सरकार और राज्य सरकार विशेष विकास पैकेज द्वारा 1500 करोड़ रु असम में बोडो क्षेत्रों के विकास के लिए विशिष्ट परियोजनाएं शुरू करना शामिल है। इसके अलावा बोडो आंदोलन में मारे गए लोगों के प्रत्येक परिवार को 5 लाख का मुआवजा दिया जाएगा |
यह ऐतिहासिक समझौता प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी के उत्तर पूर्व की प्रगति और वहाँ के लोगों के सशक्तीकरण के दृष्टिकोण को दर्शाता है । प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यभार संभालने के बाद उत्तर पूर्व क्षेत्र के बुनियादी ढांचे, कनेक्टिविटी, आर्थिक विकास, पर्यटन और सामाजिक विकास में व्यापक सुधार किया है। शाह ने कहा कि इस समझौते से असम की अखंडता का मार्ग प्रशस्त हुआ और यह समझौता सुनहरे भविष्य का दस्तावेज है क्योंकि सारे बोडो संगठन समझौते में शामिल हैं । उनका कहना था कि पहले उत्तर पूर्व के राज्य अपने को अलग थलग मह्सूस करते थे लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने यह सुनिश्चित किया कि हर हफ्ते या पंद्रह दिन में केंद्र का एक मंत्री पूर्वोत्तर राज्य का दौरा कर वहाँ के मूलभूत सरंचना की समी़क्षा कर विकास की नई इबारत लिखें । मोदी जी द्वारा पूर्वोत्तर राज्यों के विशेष संदर्भ में सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास नीति के अंतर्गत त्रिपुरा में पिछले अगस्त एनएलएफटी के 88 सदस्यों ने आत्मसमर्पण किया। 16 जनवरी 2020 को हुए ब्रू-रियांग समझौते पर हस्ताक्षर करने से लंबे समय से चली आ रही मानवीय समस्या का हल निकला और पिछले सप्ताह 644 काडर असम सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर देश की मुख्य धारा में शामिल हुए । आज का बोडो समझोता इस कडी में चौथा बड़ा कदम है । पूर्व में वर्ष 1993 और 2003 के समझौतों से संतुष्ट न होने के कारण बोडो द्वारा और अधिक शक्तियों की मांग लगातार की जाती रही और असम राज्य की क्षेत्रीय अखंडता को बरकरार रखते हुए बोडो संगठनों के साथ उनकी मांगों के लिए एक व्यापक और अंतिम समाधान के लिए बातचीत की गई। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद अगस्त 2019 से एबीएसयू, एनडीएफबी गुटों और अन्य बोडो संगठनों के साथ दशकों पुराने बोडो आंदोलन को समाप्त करने के लिए व्यापक समाधान तक पहुंचने के लिए गहन विचार-विमर्श भी किया गया।
इस समझौता ज्ञापन का उद्देश्य बीटीसी के क्षेत्र और शक्तियों को बढ़ाने और इसके कामकाज को कारगर बनाना है | इसके साथ बीटीएडी के बाहर रहने वाले बोडो से संबंधित मुद्दों का समाधान तथा बोडो की सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषाई और जातीय पहचान को बढ़ावा देना और उनकी रक्षा करना भी है । समझौते के अन्य बिंदुओं में आदिवासियों के भूमि अधिकारों के लिए विधायी सुरक्षा प्रदान करना और जनजातीय क्षेत्रों का त्वरित विकास सुनिश्चित करने के साथ साथ एनडीएफबी गुटों के सदस्यों का पुनर्वास करना भी शामिल है।समझौते से संविधान में छठी अनुसूची के अनुच्छेद 14 के तहत एक आयोग का गठन करने का प्रस्ताव है जो बहुसंख्यक गैर-आदिवासी आबादी कि बीटीएडी से सटे गांवों को शामिल करने और बहुसंख्यक आदिवासी आबादी की जांच करने का काम करेगा ।
असम सरकार निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार बीटीएडी के बाहर बोडो गांवों के विकास के लिए बोडो-कचारी कल्याण परिषद की स्थापना करेगी। असम सरकार बोडो भाषा को राज्य में सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में अधिसूचित करेगी और बोडो माध्यम स्कूलों के लिए एक अलग निदेशालय की स्थापना करेगी।वर्तमान समझौते के तहत NDFB गुट हिंसा का रास्ता छोड़ने के साथ साथ आत्मसमर्पण करेंगे और इस समझौते पर हस्ताक्षर करने के एक महीने के भीतर अपने सशस्त्र संगठनों को खत्म कर देंगे। भारत और असम सरकार इस संबंध में निर्धारित नीति के अनुसार एनडीएफबी (पी), एनडीएफबी (आरडी) और एनडीएफबी (एस) के लगभग 1500 से अधिक कैडरों के पुनर्वास के लिए आवश्यक उपाय भी करेगी।