लोकसभा में विभिन्न कारणों से फसल के नुकसान और किसानों पर इसके प्रभाव पर चर्चा

केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने लोकसभा में विभिन्न कारणों से फसल के नुकसान और किसानों पर इसके प्रभाव पर चर्चा करते हुए कहा कि किसानों की ऐसी दुर्दशा मुख्य रूप से इस कारण से है कि उन्हें कभी भी वह नहीं मिला जिसकी उन्हें सरकार से उम्मीद थी भले ही सरकारें आजादी के बाद से किसानों की मदद करने की कोशिश कर रही हों। लेकिन, अगर किसानों के कल्याण और कृषि केंद्रित उद्देश्य वाली सरकार शुरू से होती तो यह स्थिति पैदा नहीं होती। यदि देश की अर्थव्यवस्था किसानों और गांव पर निर्भर है तो सरकारों को इसे इसे प्राथमिकता देनी चाहिए।सरकारें हमेशा किसानों की मदद करने की कोशिश करती हैं। कृषि मुख्य रूप से प्रकृति और जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करती है, अन्य सभी कारकों के अनुकूल होने पर भी हो सकता है। कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े। निश्चित रूप से यह सच है की जलवायु परिवर्तन की जो समस्या है उससे सारी दुनिया आज पीड़ित है और सारी दुनिया उसपर चिंता कर रही है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट के अनुसार सामान्य तौर पर मानव के लिए उपभोग के लिए जो खाद्यान है उसकी हर वर्ष सड़ने या नुकसान होने से लगभग 750 मिलियन डॉलर की हानि होती है


उन्होंने कहा कि पूरे विश्व में मौसम में बदलाव हो रहा है और तापमान बढ़ रहा है। उसके कारण मौसमी घटनाएँ हो रही है तथा बेमौसम बरसात हो रही है। इसका नुकसान किसान को भुगतना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि दक्षिणी पश्चिमी मानसून 1 जून 2019 से 30 सितम्बर 2019 तक समग्र वर्षा सामान्य से 10 प्रतिशत से अधिक हुई। देश के 31 प्रतिशत क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा हुई, 15 प्रतिशत क्षेत्र में वर्षा कम हुई, 54 प्रतिशत क्षेत्र में सामान्य वर्षा हुई. इसमें 15 राज्य हैं जिनमें असम, मेघालय, त्रिपुरा, बिहार, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और नागालैंड शामिल हैं जो इससे प्रभावित हुए हैं.उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत पूरी तरीके से प्रतिबद्ध है. पेरिस कन्वेंशन में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा पारित प्रस्ताव के प्रति भारत की प्रतिबद्धता है और भारत सरकार ने इससे निपटने के लिए 8 मिशन भी बनाये है- राष्ट्रीय सौर मिशन, उर्जा दक्षता मिशन, स्थायी सतत निवास पर राष्ट्रीय मिशन, राष्ट्रीय जल मिशन, हिमालयी परिस्थितिकी तंत्र को बनाये रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन, हरित भारत मिशन, राष्ट्रीय कृषि सतत मिशन, जलवायु परिवर्तन ज्ञान मिशन इन पर सम्बन्धित मंत्रालय पूरी गंभीरता के साथ कम कर रहे हैं।उन्होंने बताया कि कृषि मंत्रालय द्वारा भी रणनीति बनाई गयी है और एक फ्लैगशिप परियोजना-राष्ट्रीय जलवायु अनुकूल कृषि नवाचार (एनआईसीआरए) योजना चलायी जा रही है, जिसका उद्देश्य अपनाने और प्रभाव कम करने पर रणनीतिक अनुसंधान, किसानों के खेतों पर प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन और कृषि में वैश्विक तापमान के प्रभाव को कम करने के लिए सभी हितधारकों में जागरूकता सृजित करना है।उन्होंने बताया कि बारहवीं योजना (2012-2018) के दौरान, 400 से अधिक जलवायु अनुकूल जर्मप्लाज्म लाइनों और 58 जीनोटाइप जो अधिक पानी और पोषक तत्व उपयोग दक्षता को दर्शाता है, उसकी पहचान कर ली गई है। कृषि प्रणालियों के 45 मॉडल विकसित किये गये और प्रत्येक जिले के एक प्रतिनिधि गांव को लेकर ऐसे 151 जिलों में से 1 जलवायु अनुकुल गांव को विकसित करने का कार्य किया जा रहा है  जिससे निश्चित रूप से आने वाले कल में हम लोग ऐसी परिस्थितियों से ठीक प्रकार से निपटने में सफल होंगे।


तोमर ने जानकारी दी कि मौसम का पूर्वानुमान लगे के लिए भी सरकार गंभीरता से कम कर रही है और वर्तमान में उपलब्ध जानकारी के अनुसार 40.2 मिलियन किसानों को सीधे एसएमएस के माध्यम से मौसम से सम्बन्धित एडवाइजरी जारी की जा रही है, साथ ही एक टोल फ्री नंबर भी दिया गया है जो 18001801717 है यह नम्बर सम्पूर्ण देश में 22 भाषाओँ में किसानों के प्रश्नों का जवाब देता है।उन्होंने बताया कि आईसीएआर द्वारा भी जलवायु अनुकूल फसलों के लिए काम किया है और कुल 1020 जलवायु अनुकूल किस्मों का विकास कर कृषि के लिए जारी किया है, इनमें चावल 8, गेहूं 13, मक्का 8, बाजरा  की 7, जौ की 3, रागी 3, सोरगम 5 उड़द 1 चना 9 मुंग 1 अरहर 6 मसूर 1 मूंगफली 12 सुरज्मुक्खी 2 अरंडी 1 सोयाबीन 1 आदि जलवायु अनुकूल फसलें शामिल है।कृषि मंत्री ने बताया कि चावल की स्वर्णा उप-किस्म का पूर्वी भारत में अच्छा उत्पादन किया जा रहा है। इसी प्रकार से प्याज की किस्म भीमा सुपर को भी खेती हेतु आईसीएआर द्वारा जारी किया गया है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन से ठीक प्रकार से किसान मुकाबला कर सके इस इस दृष्टि से सरकार अनुसन्धान भी कर रही है। किसानों को विभिन्न योजनाओं के माध्यम से मदद भी कर रही है और उसके परिणाम भी दिख रहे हैं।उन्होंने बताया कि 1 जून 2019 से 14 नवम्बर 2019 तक जो बैमौसम वर्षा से हुई क्षति से उभरने हेतु सरकार द्वारा एनडीआरएफ के माध्यम से प्रभावित राज्यों कुल 1086 करोड़ रूपये की सहायता दी गयी है।तोमर के अनुसार प्रथम 2 वर्षों (2016-17 एवं 2017-18) के अधिकांश बीमा दावों की गणना की जा चुकी हैं एवं भुगतान किया जा चुका है। सभी बीमा कंपनियों द्वारा कुल प्राप्त प्रीमियम राशि रू 47,353 के विरुद्ध रू 38,499 की बीमा राशि देय है। जो कुल प्राप्त प्रीमियम के विरुद्ध बीमा राशि के अनुपात में 81% है। उन्होंने बताया कि बीमा कंपनियों को सभी देय दावों का भुगतान राज्य सरकार से फसल आकड़े प्राप्त होने से 30 दिन के अन्दर दावा भुगतान करना आवश्यक है। इससे देरी होने पर 12% ब्याज दर से दण्ड के रूप में भुगतान किया जाएगा।उन्होंने बताया कि भारत में कुल ऑयल पाम क्षमता क्षेत्र का अनुमान 19 राज्यों  में 19.33 लाख हैक्टेयर है और 16 राज्यों में अक्तूबर 2019 तक वास्तविक कवरेज 3.49 लाख हैक्टेयर है जिनमें से 8 राज्यों  में फल क्षेत्र 1.35 लाख हैक्टेंयर है। फल क्षेत्र से कच्चे पाम ऑयल (सीपीओ) का उत्पादन वर्ष 2018-19 के दौरान 2.78 लाख टन है। उन्होंने कहा की इसे और अधिक बढ़ाना चाहिए। सरकार की कोशिश है कि जिस प्रकार देश दालों के क्षेत्र में आत्म निर्भर बना है उसी प्रकार से तिलहन के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बने। इसके लिए सरकार ने तिलहन मिशन भी शुरू किया है। पाम आयल  का उत्पादन बढ़े इसके लिए वर्ष 2019-20 के दौरान ऑयल पॉम के अंतर्गत 17410 हैक्‍टेयर क्षेत्र कवर करने का लक्ष्यय निर्धारित किया गया है, जिसपर मिशन मोड पर कार्य किया जा रहा है.


'किसानों की आय दोगुना करने' संबंधी मुद्दों की जांच करने और इस लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के लिए अपनाई जाने वाली रणनीतियों की सिफारिश करने हेतु अप्रैल, 2016 में एक अंतरमंत्रालयीन समिति का गठन किया है। समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सितंबर, 2018 में प्रस्‍तुत कर दी है और उसके बाद सिफारिशों की प्रगति की निगरानी और समीक्षा करने के लिए 23.01.2019 को एक अधिकार प्राप्‍त निकाय का गठन किया गया है।किसानों की आय दोगुनी करने संबंधी समिति (डीएफआई) ने उन्नति के सात प्रमुख स्रोतों की पहचान की है। विभाग के द्वारा किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए किए गए विभिन्‍न कार्यकलापों के फलस्‍वरूप निम्‍नलिखित उपलब्‍धियां हासिल की गई हैं : -



  1. वर्ष 2009-14 की अवधि के लिए अनाज का औसत वार्षिक उत्‍पादन 248.81 मिलियन टन था, जबकि वर्ष 2014-19 की अवधि में औसत उत्‍पादन 8.40 प्रतिशत बढ़कर 269.72 मिलियन टन हो गया।

  2. वर्ष 2009-14 की अवधि के लिए दलहन का औसत वार्षिक उत्‍पादन 17.52 मिलियन टन था, जबकि वर्ष 2014-19 की अवधि में औसत उत्‍पादन 20.31 प्रतिशत बढ़कर 21.08 मिलियन टन हो गया।

  3. वर्ष 2009-14 की अवधि के लिए बागवानी फसलों की औसत वार्षिक उत्‍पादन 253.4 मिलियन टन था, जबकि वर्ष 2018-19 की अवधि में औसत उत्‍पादन 17.86 प्रतिशत बढ़कर 298.67 मिलियन टन हो गया।

  4. वर्ष 2009-14 से (14.11.2019 तक) पीएसएस के तहत दलहनों और तिलहनों (खोपरा सहित) की खरीद वर्ष 2009-14 के दौरान  7.24 एलएमटी की खरीद के मुकाबले 91.47 एलएमटी है। वृद्धि लगभग 13 गुना है। 

  5. हाल ही में मधुमक्‍खी पालन मिशन शुरू किया गया है। वर्ष 2009-14 की अवधि में शहद 351.95 हजार मीट्रिक टन था और वर्ष 2014-19 की अवधि में यह 488.93 हजार मीट्रिक टन था, 38.92 प्रतिशत की वृद्धि हुई।


डॉ० एम०एस० स्‍वामीनाथन की अध्‍यक्षता में राष्‍ट्रीय किसान आयोग (एनसीएफ) ने यह सिफारिश की है कि न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) उत्‍पादन की भारित औसत लागत से कम से कम 50 प्रतिशत ज्‍यादा होना चाहिए। तथापि, जब तत्‍कालीन सरकार द्वारा राष्‍ट्रीय किसान नीति, 2007 को अंतिम रूप दिया गया था, तब उत्‍पादन की लागत की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक प्रतिफल देने की यह सिफारिश शामिल नहीं की गई थी। डॉ० एम०एस० स्‍वामीनाथन ने एनसीएफ से संबंधित अपनी रिपोर्ट में एमएसपी के निर्धारण के विभिन्‍न आयामों के बारे में बताया था लेकिन राष्‍ट्रीय किसान नीति को अंतिम रूप देते समय तत्‍कालीन सरकार ने मौजूदा प्रचलित तरीके को स्‍वीकार किया था। सरकार ने फसल-मौसम 2018-19 के लिए सभी अनिवार्य फसलों के लिए एमएसपी को उत्‍पादन की लागत की तुलना में कम से 50 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है। सरकार का यह निर्णय ऐतिहासिक था चूंकि इससे पहली बार सभी अनिवार्य फसलों के लिए उत्‍पादन लागत की तुलना में किसानों को 50 प्रतिशत मूल्‍य प्रदान करने की प्रतिबद्धता पूरी होती है। कृषि मंत्री ने बताया कि डा. स्‍वामीनाथन आयोग की 201 सिफारिशों में से 200 सिफारिशें लागू हो चुकी हैं।