प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को कहा कि भारत क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) समझौते में शामिल नहीं होगा।

दिल्ली -प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को कहा कि भारत क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौते में शामिल नहीं होगा। भारत द्वारा उठाये गये मुद्दों और चिंताओं का संतोषजनक ढंग से समाधान नहीं होने पर उसने 16 देशों के बीच होने वाले इस समझौते से बाहर रहने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने आरसीईपी शिखर सम्मेलन में अपने संबोधन के दौरान ही समझौते में शामिल नहीं होने की घोषणा की। इस सम्मेलन में दुनिया के कई नेता उपस्थित थे। 


प्रधानमंत्री ने कहा कि आरसीईपी समझौते को लेकर चल रही वार्ताओं में भारत द्वारा उठाए गए मुद्दों और चिंताओं को दूर नहीं किया जा सका है। इसके मद्देनजर भारत ने इससे अलग रहने का फैसला किया है।पी एम मोदी ने कहा RCEPकरार का मौजूदा स्वरूप पूरी तरह इसकी मूल भावना और इसके मार्गदर्शी सिद्धान्तों को परिलक्षित नहीं करता है। इसमें भारत द्वारा उठाए गए शेष मुद्दों और चिंताओं का संतोषजनक समाधान नहीं किया जा सका है। ऐसे में भारत के लिए आरसीईपी समझौते में शामिल होना संभव नहीं है। 
साथ ही वह पश्चिमी देशों को क्षेत्र की आर्थिक ताकत का भी अंदाजा करा पाता। भारत अपने उत्पादों के लिये बाजार पहुंच का मुद्दा काफी जोरशोर से उठा रहा था। भारत मुख्यतौर पर अपने घरेलू बाजार को बचाने के लिये कुछ वस्तुओं की संरक्षित सूची को लेकर भी मजबूत रुख अपनाये हुये था। देश के कई उद्योगों को ऐसी आशंका है कि भारत यदि इस समझौते पर हस्ताक्षर करता है तो देश में चीन के सस्ते कृषि और औद्योगिक उत्पादों की बाढ़ आ जाएगी। 
प्रधानमंत्री मोदी ने कहाए भारत व्यापक क्षेत्रीय एकीकरण के साथ मुक्त व्यापार और नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का पक्षधर है। आरसीईपी वार्ताओं की शुरुआत के साथ ही भारत इसके साथ रचनात्मक और अर्थपूर्ण तरीके से जुड़ा रहा है। भारत ने आपसी समझबूझ के साथ श्लो और दो की भावना के साथ इसमें संतुलन बैठाने के लिए कार्य किया है। 
पीएम मोदी ने कहाए श्श्जब हम अपने चारों तरफ देखते हैं तो सात साल की आरसीईपी वार्ताओं के दौरान वैश्विक आर्थिक और व्यापार परिदृश्य सहित कई चीजों ण्ण्ण् में बदलाव आया है। हम इन बदलावों की अनदेखी नहीं कर सकते। आसियान नेताओं और छह अन्य देशों ने नवंबरए 2012 में नोम पेह में 21वें आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान आरसीईपी वार्ताओं की शुरुआत की थी। आरसीईपी वार्ताओं को शुरू करने का मकसद एक आधुनिकए व्यापकए उच्च गुणवत्ता वाला और पारस्परिक लाभकारी आर्थिक भागीदारी करार करना था। 
पीएम मोदी ने कहाए श्श्जब मैं आरसीईपी करार को सभी भारतीयों के हितों से जोड़कर देखता हूंए तो मुझे सकारात्मक जवाब नहीं मिलता। ऐसे में न तो गांधीजी का कोई जंतर और न ही मेरी अपनी अंतरात्मा आरसीईपी में शामिल होने की अनुमति देती है। विदेश मंत्रालय में सचिव ;पूर्वद्ध विजय ठाकुर सिंह ने संवाददाताओं को बताया कि भारत ने शिखर बैठक के दौरान आरसीईपी करार में शामिल नहीं होने के अपने फैसले की सूचना दे दी है। हमारा यह फैसला मौजूदा वैश्विक स्थिति के आकलन के अलावा करार के निष्पक्ष और संतुलित नहीं होने के आधार पर लिया गया है। भारत के कई प्रमुख मुद्दे थे जिन्हें हल नहीं किया गया। 
आरसीईपी में दस आसियान देश और उनके छह मुक्त व्यापार भागीदार चीन भारत जापान दक्षिण कोरिया भारत आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं। हालांकिए भारत ने अब आरसीईपी से बाहर निकलने का फैसला किया है।  यदि आरसीईपी समझौते को अंतिम रूप दे दिया जाता तो यह दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र बन जाता। इसमें दुनिया की करीब आधी आबादी शामिल होती और वैश्विक व्यापार का 40 प्रतिशत तथा वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का करीब 35 प्रतिशत इस क्षेत्र के दायरे में होता। सूत्रों ने कहा कि भारत को छोड़कर आरसीईपी के सभी 15 सदस्य देश सोमवार के शिखर सम्मेलन के दौरान करार को अंतिम रूप देने को लेकर एकमत थे। 
सूत्रों ने कहा कि आरसीईपी में भारत का रुख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत नेतृत्व और दुनिया में भारत के बढ़ते कद को दर्शाता है। भारत के इस फैसले से भारतीय किसानों सूक्ष्म लघु एवं मझोले उपक्रमों और डेयरी उत्पाद का हित संरक्षित होगा। सूत्रों ने कहा कि यह पहला मौका नहीं है जबकि प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में भारत ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार और उससे संबंधित वार्ताओं में कड़ा रुख अख्तियार किया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी मोदी को मुश्किल वार्ताकार करार दे चुके हैं। हालांकिए ट्रंप को खुद भी सख्त रुख अपनाने के लिए जाना जाता है।