केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग और रेल मंत्री पीयूष गोयल ने सभी निर्यात संवर्धन परिषदों (ईपीसी) और भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (फियो) के साथ-साथ वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के वाणिज्य विभाग के अधीनस्थ जिंस बोर्डों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की। पांच घंटे तक चली यह लम्बी बैठक कल नई दिल्ली में आयोजित की गई। इस बैठक में श्री पीयूष गोयल ने समीक्षा करने के साथ-साथ विदेश व्यापार नीति के लिए ईपीसी से आवश्यक जानकारियां मांगीं। इसके साथ ही गोयल ने भारत से निर्यात बढ़ाने के लिए उठाये जाने वाले संभावित कदमों के बारे में ईपीसी से अपनी राय देने को कहा। ईपीसी से बजट-पूर्व जानकारियां एवं सुझाव भी मांगे गए ताकि उन्हें वित्त मंत्रालय को भेजा जा सके।
37 ईपीसी और फियो के प्रतिनिधियों के साथ-साथ वाणिज्य विभाग के अधीनस्थ जिंस बोर्डों के प्रतिनिधियों ने भी इस बैठक में भाग लिया और इस अवसर पर उन सभी समस्याओं पर वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री के साथ विचार-विमर्श किया, जिसका सामना ईपीसी को वाणिज्यिक वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात करते समय करना पड़ रहा है। इसके साथ ही इन परिषदों ने उन विभिन्न पहलों के बारे में अपने-अपने सुझाव पेश किए, जो निर्यातकों को आसानी से ऋण उपलब्ध कराने के लिए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा की जा रही हैं। इसके अलावा ईपीसी ने अन्य देशों, विशेषकर आसियान के साथ भारत के मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए)/तरजीही व्यापार समझौतों (पीटीए) के बारे में भी अपन-अपने विचार पेश किए।
जिन निर्यातकों की पहचान सीबीआईसी ने 'जोखिम भरे निर्यातकों' के रूप में की है उनकी समस्याओं पर विचार किया गया और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने निर्देश दिया कि विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के कार्यालय में एक प्रमुख (नोडल) अधिकारी की नियुक्ति की जाए। इसके साथ ही वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने इन परिषदों से जोखिम भरे निर्यातकों के रूप में चिन्हित निर्यातकों की सूची डीजीएफटी के नोडल अधिकारी को भेजने का अनुरोध किया, ताकि इस मुद्दे को वित्त मंत्रालय के समक्ष उठाया जा सके। निर्यात संवर्धन परिषदों को यह निर्देश दिया गया कि वे इस सूची को आगामी 31 दिसम्बर, 2019 तक अपर डीजीएफटी (विदेश व्यापार महानिदेशक) को अवश्य ही भेज दें।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने यह भी सुझाव दिया कि ईपीसी की संख्या को तर्कसंगत बनाना निश्चित तौर पर आवश्यक है, ताकि कामकाज में दोहराव को टाला जा सके। इसके साथ ही उन्होंने यह सुझाव दिया कि बड़े निर्यातकों को आगे भी फियो का हिस्सा बनाया जाना चाहिए और इसके साथ ही छोटी परिषदों को उन बड़ी ईपीसी में विलय कर दिया जाना चाहिए जो समान तरह के उत्पादों से जुड़ी हुई हैं।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने ईपीसी से उन गैर-शुल्क बाधाओं (एनटीबी) का अध्ययन करने का अनुरोध किया, जिनका सामना वे अन्य देशों को निर्यात करते समय कर रही हैं, ताकि इन एनटीबी पर गौर करने के लिए एक अध्ययन कराया जा सके और आगे चलकर इस मुद्दे को विशेषकर उन देशों के समक्ष उठाया जा सके, जिनके साथ भारत ने एफटीए/पीटीए कर रखे हैं।वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने निर्यातकों से उस 'निर्विक (निर्यात ऋण विकास योजना)' का उपयोग करने का अनुरोध किया जिसे कैबिनेट द्वारा जल्द ही मंजूरी दी जाएगी, जिससे कि निर्यातकों की आसान पहुंच ऋणों तक हो सके और इसके साथ ही ऋणों की उपलब्धता भी बढ़ सके, जो मूल धन एवं ब्याज के 90 प्रतिशत को कवर करेगा और जिसमें ढुलाई पूर्व एवं ढुलाई उपरांत दोनों ही ऋण शामिल होंगे।फियो के महानिदेशक और सीईओ डॉ. अजय सहाय ने सुझाव दिया कि नई विदेश व्यापार नीति के तहत हमारे निर्यात के साथ-साथ वैश्विक आयात के रुझानों का भी अध्ययन किया जाना चाहिए क्योंकि भारत मुख्यत: कपड़ा, चमड़ा, हस्तशिल्प, कालीन, समुद्री और कृषि उत्पादों का निर्यात कर रहा है। वैसे तो ये रोजगार की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वैश्विक निर्यात में इनकी हिस्सेदारी घट रही है।
वैश्विक निर्यात से जुड़े शीर्ष 5 उत्पादों, जिनकी हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से अधिक है, में इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, पेट्रोलियम उत्पाद, मशीनरी, ऑटोमोबाइल और प्लास्टिक के सामान शामिल हैं। हालांकि, भारत के निर्यात में इनकी हिस्सेदारी 33 प्रतिशत से कम है। इन 5 उत्पादों में भारत की वैश्विक हिस्सेदारी कुल मिलाकर सिर्फ लगभग 1 प्रतिशत ही है। डॉ. सहाय ने इसका जिक्र करते हुए सुझाव दिया कि नई एफटीपी के तहत इन उत्पादों के निर्यात को सुविधाजनक बनाया जाना चाहिए।